फाइलेरिया रोग । filaria disease in Hindi :–
Table of Contents
- 1 फाइलेरिया रोग । filaria disease in Hindi :–
- 2 फाइलेरिया क्या है? | What is filaria in Hindi :-
- 3 फाइलेरिया के प्रकार | Types of filaria in Hindi :-
- 4 फाइलेरिया रोग होने पर क्या लक्षण दिखाई देती है? | Failaria symptoms in Hindi :–
- 5 फाइलेरिया रोग की पहचान या निदान कैसे किया जाता है? | How is diagnosis filaria?
- 6 फाइलेरिया का उपचार कैसे किया जाता है? How is filaria treatment in Hindi :–
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फाइलेरिया रोग को हाथी पांव, फीलपांव, हाथीपगा, फाइलेरिया , श्लीपद्, एलिफेनिटीयेसिस के नामों से जाना जाता है। फाइलेरिया के जीवाणु उपसर्ग से उत्पन्न हुए ज्वर यानी बुखार है, जिसमे लसीका वाहनियो का अवरोध तथा शोध होता है।
फाइलेरिया क्या है? | What is filaria in Hindi :-
फाइलेरिया एक पैरासाइट बीमारी है यह बीमारी निमेटोड कीड़ों (Nematode Worms) के कारण होती है। ये परजीवी मच्छरों की कुछ प्रजातियों (Wuchereria Bancrofti or Rugia Malayi) और खून चूसने वाले कीटों के द्वारा इंसान के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इस बीमारी को फाइलेरिया (filaria) या फिलेराइसिस (filariasis) भी कहा जाता है । चलिए आगे जानते है कि फाइलेरिया कितने प्रकार का होता है।
माइक्रो फाइलेरिया लिम्फेटिक में रुकावट उत्पन्न कर देती है, जिससे पैरो और वृषण में सूजन आ जाती है। इसकी एलर्जी ईओसिनोफिलिया और ब्रोंकोस्पाजम हो जाता है। पूर्ण विकसित अधिकतर फाइलेरी कृमि मर जाते है। अथवा रोगी को बार बार बुखार आने पर जम जाते हैं।
कभी कभी ग्लैंड बायोप्सी करते समय में भी मिलते है। प्रायः नर और मादा कृमि एक दूसरे में गूंथे हुए होता है, जिनको मुश्किल से ही अलग किया जा सकता है। मादा कृमि नर कृमि से अधिक लंबी होती है ये दोनो कृमि पतले धागे जैसा होता है तथा इसका जीवन काल 10 से 15 वर्षो का होता है। भारत वर्ष में पाए जाने वाली फाइलेरी कृमि की नीचे लिखे दो प्रमुख जातियां है :–
- बुचेरिया ब्रेनक्रॉफ्ट।
- बुजिया मलायाई।
Note :– माइक्रोफाइलेरी दिन के समय रोगी के ब्लड से अदृश्य हो जाता है और रात्रि के समय पुनः आ जात है, जिससे रात के समय में मच्छर द्वारा काटे जाने पर यह एक मनुष्य से दूसरे स्वास्थ मनुष्य में प्रवेश कर जाता है।
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फाइलेरिया के प्रकार | Types of filaria in Hindi :-
फाइलेरिया तीन प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं –
- लिम्फेटिक फाइलेरिया (Lymphatic filariasis) :– यह फाइलेरिया का सबसे सामान्य प्रकार है, जो वुकेरेरिया बैन्क्रॉफ्टी (Wuchereria bancrofti), ब्रुगिया मलाई (Brugia malayi) और ब्रुगिया टीमोरि (Brugia Timori) नामक परजीवियों की वजह से होता है। ये कीड़े लिम्फ नोड्स सहित लसीका प्रणाली (Lymphatic System यानी सर्कुलेटरी सिस्टम का एक अंग) को प्रभावित करते हैं। लिम्फेटिक फाइलेरिया को एलीफेनटायसिस (Elephantiasis) भी कहा जाता है।
- सबक्यूटेनियस फायलेरियासिस (Subcutaneous filariasis) :– यह लोआ लोआ (आई वॉर्म), मैनसनैला स्ट्रेप्टोसेरका और ओन्कोसेरका वॉल्वुलस (Onchocerca Volvulus) नामक परजीवियों के कारण से हो सकता है। यह त्वचा की निचली परत यानी सब्क्यूटेनियस स्किन को प्रभावित करता है ।
- सीरस कैविटी फाइलेरिया (Serous Cavity filariasis) :– यह भी फाइलेरिया के प्रकार में ही आता है । अन्य परजीवी के द्वारा यह भी फैलता है।
नोट :– लिम्फेटिक फाइलेरिया अधिक प्रचलित फाइलेरिया है और वो दोनो फाइलेरिया का रेयर केस मिलता है। इसलिए उन दोनो फाइलेरिया के बारे में विस्तार नहीं किया गया है।
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फाइलेरिया रोग होने का क्या कारण है? | What causes filaria :–
फाइलेरिया रोग किन कारणों यानी किन वाहको द्वारा होता है।
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा फाइलेरियेसिस उत्पन्न करने वाली कृमि बुचेरिया बेनक्रोफ्टी प्रजाति की है, फाइलेरीया परिवार की है । इसका संक्रमण क्यूलेक्स फेटागेंस नामक मच्छर काटने से होता है। ये कृमिया मनुष्य के लार ग्रंथियों थोरेसिक डक्टस और लस वहानियां में रहती है।
- बैन्क्रॉफ्टी (Wuchereria Bancrofti)
- ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi)
- ब्रुगिया टीमोरि (Brugia Timori)
- मैनसोनेल्ला (Mansonella)
- ओन्कोसेरका वॉल्वुलस (Onchocerca volvulus)
दोस्तों अब हम बात करेंगे की फाइलेरिया की पहचान कैसे करेंगे तो चलिए उसी के बार में बात करते है जो falaria के ऐसे लक्षण जिससे पता चल जायेगा।
फाइलेरिया रोग होने पर क्या लक्षण दिखाई देती है? | Failaria symptoms in Hindi :–
- प्रायः ये हानिकारक नही होता है तथा कई वर्षो तक बिना किसी भी लक्षण के शरीर में रहता है। कुछ रोगियों में एलर्जी एवं हाइपरसेंसिटिवि प्रदर्शित होता है,जिससे रोगी को 3 से 6 महीना के बाद पित्ती या छपकी तथा ब्रांकोस्पाज्म का कष्ट होता है। एक से डेढ़ साल बाद लार्वा पूर्ण व्यस्क अवस्था में पहुंचकर लसिक वाहिका में रुकावट उत्पन्न करता है। रोग के शुरुआत में लासिका संबंधी इन्फेक्शन एवं सर्दी के साथ बुखार चढ़कर वृषनशोध हो जाता है। इसको छूने पर दर्द होता है और त्वचा का रंग लाल हो जाता है, लिम्फनोड बढ़ जाते है, प्रायः पैरो में ही लिम्फेजाईटिस होती है, रोगी के पैर सूजे रहते है , और उसको दबाने पर गड्ढा पड़ जाता है। धीरे धीरे फाइब्रोसिस बढ़ती है तथा सूजन को दबाने पर गड्ढा नही पड़ता है, किंतु उसके ऊपर की त्वचा सिकुड़ने लगती है और वह नालीदार सदृशय हो जाता है। स्वेद या पसीना तेल ग्रंथियों में रुकावट के कारण त्वचा सुखी तथा बाल कड़े वा छितरे हुए रहते हैं। अंत में रोगी के पैर हाथी के जैसा यानी मोटे वा भारी हो जाते है।
- पुरुष रोगियों में फाईलेरियल स्क्रोटम और वृषनशोध से अंडकोष वृद्धि हाइड्रोसिल हो जाता है तथा शुक्र नलिका कॉर्ड मोटी हो जाती है ।
- महिलाओं में लेबिया वाल्वा , मेमरीग्लैंड्स और क्लाइटोरिस में यह रोग हो जाता है।
- रोगी के मल मूत्र में काईल बनने लगता है मूत्र दूध जैसा सफेद और गाढ़ा कभी कभी उसमे रक्त भी आता है। इसमें माइक्रो फाईलेरिया देखे जा सकते हैं। यदि ऐसे मूत्र में एसिटोंन इथर अथवा क्लोरोफार्म मिला दिया जाए तो, काईल धुल जाता है और मूत्र साफ हो जाता है।
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फाइलेरिया रोग की पहचान या निदान कैसे किया जाता है? | How is diagnosis filaria?
- ब्लड टेस्ट में फाईलेरिया जीवाणु का मिलना।
नोट :- रोगी के ब्लड में रात्रि के समय में रोगी के सो जाने पर फाईलेरी कृमि पाए जाते हैं, इसलिए ब्लड टेस्ट हेतु सैंपल रात के समय में ही लेना चाहिए सोने के बाद। - बार बार बुखार के साथ लासिक वहानियो के शोध तथा अन्य लक्षणों से निदान होता है।
- परिपक्व कृमि की पहचान हेतु ग्लैंड बायोप्सी करनी चाहिए।
- एक तरफा शोध जिसको दबाने पर गड्ढा न पड़े अथवा हाथी के पैर के जैसा तथा लिम्फ ग्लैंड्स का बढ़ा हुआ मिलना इस रोग की पहचान है।
- रक्त जांच में ईओसिनोफीलिया तथा मूत्र की अन्य जांच।
फाइलेरिया रोग का जोखिम कारक क्या है? | What are the risk factors ?
- Vital sign organs में जीवाणु के उपद्रव से कभी कभी मृत्यु।
- अन्य संक्रमणों के साथ हो जाने पर भी मौत संभव है।
- शौफयुक्त अंगों के आकार और बोझ से असुविधा।
- लंबे वक्त से उष्णकटिबंधीय (Tropical) या उपोष्णकटिबन्ध (Sub-Tropical) क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को यह होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है।
फाइलेरिया का उपचार कैसे किया जाता है? How is filaria treatment in Hindi :–
- रोगी को बिस्तर पर पूर्ण विश्राम दे।
- प्रभावित अंगों को ऊंचा उठाकर रखना चाहिए।
- ज्वर कम करने हेतु पैरासिटामोले (व्यवसायिक नाम क्रोसिन, कालपोल,मेटासिन आदि) का रोगी को उचित मात्रा में सेवन कराएं। Ibuprofen व्यवसायिक नाम बुफ्रेन 400 mg, अथवा 600 mg की टेबलेट दिन में तीन बार सेवन कराएं।
- अन्य संक्रमण के लिए सल्फाड्रग्स तथा पेनिसिलिन का उचित मात्रा में सेवन करें।
- बेनोसाइड फोर्ट टेबलेट एक टेबलेट दिन में तीन बार तीन सप्ताह तक सेवन कराएं।
- आवश्यकतानुसार शल्य कर्म भी किया जाता है।
- एंटीपैरासिटिक उपचार (Antiparasitic Treatment)
- जैसा कि आर्टिकल में ऊपर बताया गया है कि निमेटोड कीड़े फाइलेरिया का कारण बनते हैं। ऐसे में इन्हें खत्म करने के लिए एंटी पैरासिटिक उपचार की आवश्यकता हो सकती है। इसमें डॉक्टर मरीज को नीचे बताई गई दवाइयां दे सकते हैं।
- एल्बेंडाजोल (Albendazole)
- आइवरमेक्टिन (Ivermectin)
- डॉक्सीसायक्लिन (Doxycycline)
- डायथिलकारबामैजिन साइट्रेट (DEC-डीईसी)
नोट :- ध्यान रहे कि ये दवाइयां डॉक्टर के कहे अनुसार ही लें। इन्हें बिना डॉक्टरी परामर्श के उपयोग न करें। हो सकता है कि डॉक्टर मरीज की स्थिति के अनुसार इन दवाइयों में बदलाव भी करें।
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• डाईइथाइल कर्बोमेजिन :– यह एंटी फलेरियल औषधि है। इस औषधी का उपयोग फैलेरिया, आंख में फैलेरिया तथा ट्रॉपिकल ईओसिनोफीलिया में किया जाता है यह दवाई टेबलेट और सिरप के रूप में अनेक नामों से बाजार में उपलब्ध है। इसकी मात्रा रोगियों वा बच्चो के लिए एक से दो mg प्रति kg शारीरिक भारानुसार प्रतिदिन तीन बार तीन सप्ताह।
फाइलेरिया रोग से बचने के लिए क्या खाना चाहिए? । filaria Diet in Hindi :-
फाइलेरिया रोग का उपचार असरदार साबित हो सके, इसके लिए उचित आहार लेना भी जरूरी है। इसलिए, नीचे हम फाइलेरिया में आहार के सेवन के बारे में कुछ जानकारी के लिए शेयर किए हैं।
- सबसे पहले आप प्रोटीन युक्त भरपुर आहार लें ।
- ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन करें।
- नोट :- इसके अलावा, आहार से संबंधित और भी जानकारी प्राप्त करने के लिए रोगी डॉक्टर से मिल सकती है। जैसा कि हमने ऊपर पहले ही बताया है कि फाइलेरिया के कई प्रकार हैं। ऐसे में डॉक्टर मरीज की स्थिति को देखते हुए उन्हें आहार के बारे में जानकारी देते हैं।
फाइलेरिया से निजात पाने के आयुर्वेदिक उपाय :–
मधोहर वटी, त्रिफला गुग्गुल सुबह-शाम 2-2- गोली खाएं। पूननर्वा मंडूर 2-2 गोली खाएं। गौधन अर्क 25-50 एमएल खाली पेट पिएं।
फाइलेरिया से बचने के उपाय । Prevention Tips for filaria in Hindi :-
बहुत सारे लोग जानकारी के अभाव में बीमारी से अपना बचाव नहीं कर पाता। इसलिए इस आर्टिकल के माध्यम से हम हाथी पांव यानी फाइलेरिया से बचाव के बारे में कुछ जरूरी बाते पहुंचाने की कोशिश किए है।
- जैसा कि आर्टिकल में ऊपर बताया गया है कि मच्छर और खून चूसने वाले कीट फाइलेरिया को फैलाने का काम कर सकते हैं। इसलिए, जितना हो सकते अपने आप को इनसे दूर रखें।
- शाम के वक्त में पूरे कपड़े पहनें।
- रात को सोने से पहले मच्छरदानी लगाएं।
- घर में मच्छर भगाने वाली लिक्विड दवाओं जैसे की आपको फ्लिपकार्ट पर आसानी से मिल जाता है तो उसका उपयोग करें।
- संभव हो तो बीच-बीच में बॉडी चेकअप के लिए भी डॉक्टर के पास जरूर जाएं।
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FAQ : फाइलेरिया से जुड़ी सवाल जवाब?
Q) फाइलेरिया में क्या क्या होता है?
Ans :– वैसे तो बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या होती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैरों में हाथी के पांव जैसी सूजन आ जाती है, इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है।
Q) फाइलेरिया का घरेलू इलाज क्या है?
Ans :– लौंग फाइलेरिया के उपचार के लिए बहुत प्रभावी घरेलू नुस्खा है।
• काले अखरोट का तेल काले अखरोट के तेल को एक कप गर्म पानी में तीन से चार बूंदे डालकर पिएं भोजन, अश्वगंधा, ब्राह्मी, अदरक , शंखपुष्पी , कुल्ठी आदि।
Q) फाइलेरिया में क्या परहेज करना चाहिए?
Ans :– अधिक जानकारी के लिए ऊपर दिए हुए लेख को पढ़ें।
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निष्कर्ष :– आशा करते हैं कि इस आर्टिकल से आपको फाइलेरिया के कारण, लक्षण और अन्य फाइलेरिया से जुड़ी जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अगर समय पर इसका इलाज किया जाए तो फाइलेरिया रोग का उपचार आसानी से संभव है। साथ ही बेहतर है कि जितना हो सके फाइलेरिया से बचाव के लिए सावधानियां बरतें। परिवार में या किसी जान-पहचान के व्यक्ति में फाइलेरिया के लक्षण दिखें, तो उन्हें तुरंत डॉक्टरी उपचार की सलाह दें। साथ ही ज्यादा से ज्यादा इस लेख को अन्य लोगों तक पहुंचाकर इस समस्या संबंधी जागरूकता को बढ़ाएं। इसके अलावा, इस आर्टिकल से जुड़ी सवाल जवाब के लिए आप हमें कॉमेंट कर सकते है।
Bsc Nursing ( 2 year Experience)